चल ढूंढ़ते हैं , सफरनामा एक नया
पत्थर की मूरतों को इंसान बनाते हैं
इक बस हंसी तू फूंकना , कुछ रंग छिड़कू मैं
चल मिलके , इक नया गुलिस्तां बनाते हैं !
चल तोड़ते हैं आज ये , दीवार-ए-अजनबी
चल मिलके एक नया खुशनुमा जहाँ बनाते हैं !
शिकायत न हो तुझे , न मुझे, की मैं बदल गया
नक्काशी करके , आइना-ए-इमान बनाते हैं !
बिखरे हुए तिनके हैं, जो चल मिलके समेटते हैं
सादी सी डोरियों में थोड़ा रंग लपेटते हैं
चल दुरुस्त करते हैं, तस्सवुर कुछ इस कदर ,
क़ुत्बों में कौंसे हो जड़ें, वो अंजाम बनाते हैं !
परवाज़ न तेरी रुके, न मेरी चढ़े सलीब पे
चल उड़ान भरते हैं , और एक नया आसमान बनाते हैं !
good one 👍
बहुत बढ़िया
Good one. Iam expecting more from you… Really nice…
Bahut acche